ये राहें जो हर तरफ जाने के लिए होती है केवल फर्क ये होता है की तय हमें करना है की हमे जाना कहा है , हमारी मंजिल कहा है ये तय हमे ही करना है . जब हम घर से कही जाने के लिए निकलते है तो कई बार रास्ते में कई ऐसी बाते हो जाती है जो हमे हमेशा के लिए हमारी यादो में बस कर रह जाती है क्या कभी किसी ने ये सोचा है जो घटना हम देखते है वो जब हमे जिंदगी भर याद रह जाती है तो वो बात जिनके साथ होती है क्या वो कभी भूल पाते है कभी वो इन बातो को अपने दिल से भुला पाने में सफल हो पाते है . जो पल हम जीते है वो बाद में यादे बनकर ही रह जाती है ऐसे ही हम जब स्कूल से पास हो कर विश्वविधालय में जाते है तो हमे वो स्कूल के दिन बहुत याद आते है वैसे ही आज विश्वविधालय के ये दिन जो दोस्तों के साथ हँसते-खेलते लड़ते झगते बीत जाते है वो यादे ही याद रह जाती कुछ यादे खट्टी होती है कुछ मीठी होती है पर अछी दोनों ही लगती है. जब हम घर से विश्वविधालय और विश्वविधालय से घर आते है तो रास्ते में "बैकुण्ड धाम" पड़ता है कभी-कभी तो उसके सामने कुछ भीड़ तो हमेशा रहती है कभी-कभी ही वो रास्ता खाली मिलता है पर वही कभी-कभी बहुत भीड़ रहती है पर कुछ दिनों में तो जैसे आदत ही पड़ गई थी उस भीड़ की पर सायद इसकी आदत उन लोगो को नहीं थी जो वह पर सिर्फ उस दिन ही गए थे वो दर्द उनका अपना ही है उसको न हम समाज सकते है और न हम महसूस कर सकते है इस दर्द को मैंने तब महसूस किया जब उसी जगह पर मैंने एक 5 से ६ साल के बच्चे को रोते चिल्लाते हुए देखा मैंने उससे पूछा की क्या हुआ तब वह पर खड़े एक लड़के ने बताया की उसकी माँ का देहांत हो गया है उस बच्चे को देख कर शायद मैंने उस दर्द को महसूस किया
की हम उन स्कूल और विश्वविधालय की यादो को याद करके खुश होते है जबकि उनसे तो हम मिलते भी है और बातें भी होती है तो उनकी क्या कहे जो कभी दोबारा नहीं मिल पाते .
की हम उन स्कूल और विश्वविधालय की यादो को याद करके खुश होते है जबकि उनसे तो हम मिलते भी है और बातें भी होती है तो उनकी क्या कहे जो कभी दोबारा नहीं मिल पाते .
1 comment:
यादें तो ज़िन्दगी की सचाई है..अच्छा प्रयास है
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