Thursday, March 3, 2011

अपना सपना मनी मनी

Admin
पैसे की शुरुवात होती है हमारे जन्म से और अंत होता है हमारे अंत के साथ 
पैसा जिंदगी की जरुरत है और ये बहुत ही कड़वा सच है जिसे बहुत लोग मानने से भी इनकार करते है वो शायद इसलिए क्योकि कहा गया है की "सच कड़वा होता है " कोई माने या न माने और फिर किसी के मानने से सच झूठ और झूठ सच नहीं हो जाता .पैसे के पीछे तो दुनिया का हर शख्स भागता है ,फिर चाहे वो गरीब हो या अमीर चहिये तो सभी को पैसा बच्चे को चाकलेट के लिए माँ बाप को उसकी पढाई के लिए बच्चा थोडा बड़ा हुआ तो साईकिल ,खिलोने फिर कुछ सालो बाद गाडी और इन फ़र्माइसो को पूरा करने के लिए माँ बाप को दुगनी और कभी कभी तिगुनी महनत की जरुरत भी पड़ जाती है . अमीर को भी पैसा चाहिए और गरीब को भी पैसा चाहिए और इसी भागा दौड़ी में अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है जिससे जिनके पास ज्यादा पैसा है वो लोग कम पैसे वालो का शोषण होता है भले ही ये किताबी बाते लगे लेकिन ये सच है हम इसको किताबी बाते इसलिए कह सकते है क्योकि हम जिस दुनिया में जीते है वह पर लोग आँखे बंद कर के ही जीना पसंद करते है बल्कि ऐसा नहीं होना चाहिए अक्सर देखा गया है की अगर किसी दो पहिया वाले की और एक कार वाले की टक्कर होती है तो उसमे दोषी हमेशा दो पहिये वाली गाड़ी की ही गलती होती है और अगर दो पहिये वाली गाड़ी और साईकिल की टक्कर हो तो उसमे दोषी साईकिल वाला ही हमेशा होता है क्योकि हर इंसान अपने पैसो के दम पर अपने से गरीब को दबाना ही चाहता है शयद ये प्रकृति का नियम ही है जैसे कुत्ता बिल्ली को खाता है बिल्ली चूहे को और चूहा फिर किसी और को खाता है ये चक्र यू ही चलता रहता है सबसे बड़ा सवाल क्या एक अमीर इंसान की नजरो में एक गरीब इंसान इंसान नहीं रह जाता है ? एक गरीब का खून बहता है तो उसको अहमियत नहीं दी जाती और वही अगर एक अमीर का एक बूँद ही निकल आये तो हाय तोबा हो जाती है और फिर मुझे नहीं लगता की गरीब के शरीर में खून की जगा पानी होता है और फिर जिसे मानना है माने क्योकि ये स्वतंत्र विचारो की दुनिया है कोई भी कुछ भी सोच और बोल सकता है बिना किसी बंधिश के
अधिकार सभी के बराबर है सविधान के अनुसार जिसे हम सभी समानता का अधिकार कर कर जानते है लेकिन मुझे जहा तक लगता है ये है सिर्फ किताबी बाते वो इसलिए क्योकि जहा पर समानता की बात आती है द्व्वेश भेद भाव की बात आती है अमीर और गारी की बात आ ही जाती है और फिर जब अमीर गरीब की बात आई तो वैसे ही गरीब को पैसा दे कर और अगर पैसा नहीं लिया दिया गया तो धमकी दे कर द्र धमका दिया जाता है और फिर उससे जो भी काम करवाना है करवा लिया जाता है ...................है न अजीब बात सोचो तो अजीब और अगर ना सोचो तो कही कुछ नहीं होता दुनिया बहुत अच्छी है 
                                    एक बच्चा भी पढाई करता है तो उसका मकसद पैसा ही होता है भले ही वो माने या न माने पर आखिरी समय जब पढाई खत्म होने वाली होती है तब लगता है की नहीं यार कम से कम अब तो कुछ कमाना ही चाहिए कब तक माँ बाप के पैसे उड़ाते रहेंगे तब समझ में आता है की पैसो की कीमत क्या है जब हम घर में पैसे मांगते है और मम्मी का जवाब आता है की कितना खर्च करते हो फालतू के खर्चे बंद करो वरना पापा से बोल दूंगी तब भी लगता है की कम से कम अब तो कमाना ही चाहिए यार.............कभी कभी हमारे सर हम सभी से मजाक में बोलते है की क्यों मजा आया क्लास में और जब बच्चो का जवाब हा आता है तो कहते है की बच्चो मुझे पैसे ही बोलने के मिलते है ,पहले लगता था की ये एक मजाक है पर नहीं इस मजाक में जिंदगी की पूरी खुशिया और गम मिलते और बिछड़ते है 
                                    है सच पर कड़वा है 
                                                अपना बना सको तो सच्चा है,
                                           हर सच की अपनी कहानी 
                                                          और अपना फ़साना है 
                                                                                               लव यू लाइफ 

Monday, February 28, 2011

हैरान - परेशान


जरुरी है कभी किसी को जानना तो कभी किसी को पहचनना  ,जरुरी नहीं की उसको सूरत  से पहचाना जाए बल्कि जरुरी ये है की पहचाना उसकी सीरत से जाए            
            रोज हम कुछ न कुछ सोचते है और किसी न किसी के बारे में बात करते ही रहते है और जिसके बारे में हम बात कर रहे है कभी-कभी वो शक्श ऐसा होता है की हमे लगता है की वो ऐसा क्यों है? या वो कैसा है? क्या वो उसकी अच्छाई है या बुराई है ? ये सोचने पर हम मजबूर हो जाते है और फिर ये तो निर्भर करता है उसकी उन बातो पर जिन पर हम गौर फरमा रहे होते है तो आज हम लिखने वाले है ऐसे ही एक शक्श के बारे में जो की मेरे ही साथ पड़ता है मेरी ही क्लास में,किसी के बारे में अच्छी तरह से कहना थोडा कठिन हो जाता है जब हम उसे जानते तो है मगर बहुत अच्छी तरह न जानते हो लेकिन उसको रोज देखते है और फिर भले ही हम किसी को जाने या न जाने पर उसकी कुछ बातो पर ध्यान तो जाता ही है तो फिलहाल हम जिन जनाब का जिक्र कर रहे है उनका नाम है"माननीय आशीष"जिनका परिचय हम आपसे करवाने वाले है, जी हा हम जानते है की इतनी शुद्ध हिंदी देख कर आप सोच में पड़ गए होंगे की इसे क्या हुआ अभी-अभी तो ठीक था मामला और बात भी अच्छे से कर रही थी पर अब क्या हुआ जो इतनी शुद्ध हिंदी शुरू कर दी अरे भाई ये खाशियत है आशीष जी की .कोई इनसे छोटा हो या बड़ा हो ये जनाब पुरे आदर सम्मान के साथ ही बात करते है ये कभी भी किसी से बात करते समय अगर उनका नाम लेते भी है तो"जी" जरूर लगाते है और जनाब बात भी शुद्ध हिंदी में ही करते है जबकी ऐसा नहीं है की इनको अंग्रेजी आती नहीं है,बल्कि ये हिंदुस्तान की हिंदी "भाषा" को अधिक महत्व देते है ये भी इनकी एक खासियत है हिंदी के शब्द जैसे "अहमियत,जागरूक,सहमति" इत्यादि जो की इनकी बोल-चाल की भाषा में से ही कुछ शब्द है
और जब ये शुद्ध हिंदी में बात करना शुरू करते है तो फिर क्या बताऊ कुछ समझ में आती है तो कुछ चली जाती है सिर के ऊपर से ऐसा नहीं है की ये सभी को पारेशान करते है बल्कि वो समझ में नहीं आती है लेकिन अगर मै सच बोलू तो कभी कभी हो भी जाती हु की हे भगवन इसे जरुरत क्या है इतनी अच्छी हिंदी बोलने की अगर ये हम लोग जैसे भी बात करे तो क्या काम नहीं चलेगा पर बाद में लगता है की नहीं यहाँ पर हम गलत है और ये उसकी खूबी है ,
                    बहुत आसान सी और सीधी ,सच्ची बात है की अगर हम किसी से दोस्ती करते है तो उस इंसान की सीरत से ज्यादा सूरत पर ध्यान देते है ये देखते है की उसका स्टीटस कैसा है पर ये ऐसा शक्श है जिसको मैंने सबसे बात करते हुए देखा है पढने में अच्छा है ,लेख भी अच्छा  लिखता है बस समझ होनी चाहिए उसको समझने की अरे भाई दिक्कत होती है तो बस हिंदी की मैंने तो बस उसके कुछ हलके शब्दों को ही बयान किया है अभी अरे जब आप उस से मिल कर बात करेंगे तो सच्चाई खुल कर सामने आएगी उसकी शुद्ध हिंदी की .पर कभिजब ये हम जैसी आसान हिंदी बोलते है तो लगता है की हा अपने ही बीच का कोई है वरना यही लगता है की ना जाने कहा से सिख कर आये है .
                  कोलेज आते है रोज पर रोज की तरह ३० मिनट देरी से और आते ही आते अपने गुरु जी के पैर छु कर प्रणाम करते है उसके बाद जो पढ़ाई हुई तो ठीक वरना मस्त हो कर अपने में ही गुनगुनाते हुए चले जाते है मन हुआ तो बोले वरना जरुरत नहीं है ये हमेशा ऐसे दुःख भरे गाने सुनते है जैसे दुसरे देवदास यही है खैर अपनी अपनी पसंद ...............
                   आंखे होती है दिल की जुबान कहना आसान पर समझना मुश्किल पर ये जैसे सूरत से बच्चे लगते है वैसे ही दिल से  भी वो इसलिए क्योकि जो दिल में वो ही जुबान पर और जो जुबान पर वो ही दिल पर होता है पर अभी अभी मैंने खुद ही कहा की समझना मुश्किल होता है ठीक उसी तरह कभी कभी लगता है मुझे भी की आँखों में कुछ और दिल में कुछ और ही है वो इस लिए क्योकि जो सूनापन इनकी आँखों में है क्या वो दिल में भी हो सकता है
            कभी कभी आशीष मुझे एक अनसुलझी सी पहेली लगने लगता है जान कर भी लगता है नहीं जाना तो कभी लगता है की अनजाना हो कर भी जाना पहचाना है शायद यही कारण है की इसके बारे में लिखने में मुझे इतना समय लग गया कहने को तो अभी और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है पर किसी भी इंसान की बुराई और अच्छाई दोनों की जाए तो शायद समय कम पद जाए.
          रंग है गोरा कद है छोटा, मस्तानी इनकी चाल है,
          देख कर इनको, लोग भूले अपने हाल है.
           नाम है इनका रसिया ,लोगो को बड़ा है भाते ,
             रंग है गोरा कद है छोटा,मस्तानी इनकी चाल है, 

Sunday, February 27, 2011

आंसू ...........

ठहरे रहते है ये किसी कोने में ,
मिलती है ख़ुशी या मन होता है उदास ,
झलक आते है ये निर्झर आँखों से ,
बड़े  ही अजीब होते है ये आंसू ,
दुखी मन को सांतुवना देते है ,
ख़ुशी में ये ख़ुशी का इजहार करते है ये आंसू ,
निकलते है ये कभी मजबूरी में ,
तो कभी कमजोर बनाते है ये आंसू,
निकलते है जब ये तन्हाई में ,
तो मजबूत बनाते है ये आंसू ,
इनकी कथा भी अजीब होती है,
कभी अपनों को दूर करते है ,
तो कभी गिरो को करीब लाते है ये आंसू , 

चाहते ............

चाहतो पर जीते है, चाहतो पर मरते है,
चाहत है जीत तो चाहत है हार,
जिद्द में है चाहत तो शांति में भी है चाहत,
हर पल में है चाहत तो, हर झिन्न में है चाहत,
चाहत चाहत चाहत हाय ये चाहत ,
कब ख़त्म होगी ये चाहत........
              चाहत एक ऐसी चिड़िया का नाम है जो कभी नहीं मरती ,उडती रहती है और दूर दूर तक जाती है कभी ये चाहत बनती है किसी को तो कभी ये बर्बाद कर देती है ,चाहत कभी अची है तो कभी बुरी बन जाती है इसी चाहत के चक्कर में बर्बाद होते तो बहुतो को आबाद होते भी देखा है मैंने . इस चाहत से काफी करीबी रिश्ता है हमारा कभी अपनी ख़ुशी को लेकर होती है ये चाहत तो कभी दुसरो की बर्बादी को ले कर होती है चाहत, कभी जलन में छुपी होती है ये चाहत और कभी-कभी किसी चीज़ को पाने की भी होती है ये चाहत .
            चाहत की शुरुआत हमारे पैदा होते ही हो जाती है जब हम पैदा हुए थे और गोद में थे तब दूध की बोतल की चाहत थी क्योकि उस समय हमे अगर कुछ पता था तो वो थी भूख तो मुझे लगता है वो चाहत जायज थी ,और जब थोड़े बड़े हुए तो खिलोनो की चाहत  खुद के पास भी है खिलोने पर दुसरो के खिलोनो को देखकर उसको अपना बनाने की चाहत और फिर उसके बाद स्कूल जाने से पहले ही जब अपने से बड़े भाई बहनों को देखा स्कूल जाते हुए तब मेरा भी मन हुआ की मै भी जाऊ पर अगर जाना संभव होता तो घर वाले जरुर भेजते ये न समझते हुए जिद्द करते हुए स्कूल जाने की चाहत और जब सकूल जाने लगे तब अछे बैग अच्छी बुक और अछे पेंसिल,रबर और ऊनिफार्म की चाहत , और जब इन सभी की बाते हो ही गई है तो टाफी और चाकलेट कहा छुट सकती है और कई बार तो ये भी देखा गया है की घर के लोग अगर मन किया तो कभी कभी बच्चो को चोरी करते भी देखा गया है वो चोरी इसलिए होती है क्योकि वह पर बात होती है तो सिर्फ चाहत की ,और फिर अभी तो बचपना है और बचपने में इतनी चाहत जब एक बच्चे को समझ नहीं होती है तो सोचो जरा बड़े होने पर तो चाहतो के ढेर लग जाते है और कभी कभी उन्ही चाहतो के कारण  लोग गुनाह करने पर मजबूर हो जाते है 
            कहने को तो ये किताबी बाते लगती है पर जरा गौर फरमाइए तो महसूस होगा की नहीं ये जिंदगी का कड़वा सच है जो की गले में अटका हुआ हुआ है जिसे न ही निगला जा सकता है और न ही उगला जा सकता है  ,कही-कही चाहत सही है तो कही कही गलत है बस अगर चाहत को सही नजरिये से देखा जाए तो बहुत अच्छी है पर वही गलत तरीका अपनाया जाये तो गलत है
             सोचने की बात है की बचपने में ये चाहत इतना डरावना रूप ले सकती है तो बड़े होने पर क्या नहीं हो सकता हमे तो लगता है चाहत को छोड़ सप्ने  की ओर भागना ज्यादा बेहतर होगा