Monday, February 28, 2011

हैरान - परेशान


जरुरी है कभी किसी को जानना तो कभी किसी को पहचनना  ,जरुरी नहीं की उसको सूरत  से पहचाना जाए बल्कि जरुरी ये है की पहचाना उसकी सीरत से जाए            
            रोज हम कुछ न कुछ सोचते है और किसी न किसी के बारे में बात करते ही रहते है और जिसके बारे में हम बात कर रहे है कभी-कभी वो शक्श ऐसा होता है की हमे लगता है की वो ऐसा क्यों है? या वो कैसा है? क्या वो उसकी अच्छाई है या बुराई है ? ये सोचने पर हम मजबूर हो जाते है और फिर ये तो निर्भर करता है उसकी उन बातो पर जिन पर हम गौर फरमा रहे होते है तो आज हम लिखने वाले है ऐसे ही एक शक्श के बारे में जो की मेरे ही साथ पड़ता है मेरी ही क्लास में,किसी के बारे में अच्छी तरह से कहना थोडा कठिन हो जाता है जब हम उसे जानते तो है मगर बहुत अच्छी तरह न जानते हो लेकिन उसको रोज देखते है और फिर भले ही हम किसी को जाने या न जाने पर उसकी कुछ बातो पर ध्यान तो जाता ही है तो फिलहाल हम जिन जनाब का जिक्र कर रहे है उनका नाम है"माननीय आशीष"जिनका परिचय हम आपसे करवाने वाले है, जी हा हम जानते है की इतनी शुद्ध हिंदी देख कर आप सोच में पड़ गए होंगे की इसे क्या हुआ अभी-अभी तो ठीक था मामला और बात भी अच्छे से कर रही थी पर अब क्या हुआ जो इतनी शुद्ध हिंदी शुरू कर दी अरे भाई ये खाशियत है आशीष जी की .कोई इनसे छोटा हो या बड़ा हो ये जनाब पुरे आदर सम्मान के साथ ही बात करते है ये कभी भी किसी से बात करते समय अगर उनका नाम लेते भी है तो"जी" जरूर लगाते है और जनाब बात भी शुद्ध हिंदी में ही करते है जबकी ऐसा नहीं है की इनको अंग्रेजी आती नहीं है,बल्कि ये हिंदुस्तान की हिंदी "भाषा" को अधिक महत्व देते है ये भी इनकी एक खासियत है हिंदी के शब्द जैसे "अहमियत,जागरूक,सहमति" इत्यादि जो की इनकी बोल-चाल की भाषा में से ही कुछ शब्द है
और जब ये शुद्ध हिंदी में बात करना शुरू करते है तो फिर क्या बताऊ कुछ समझ में आती है तो कुछ चली जाती है सिर के ऊपर से ऐसा नहीं है की ये सभी को पारेशान करते है बल्कि वो समझ में नहीं आती है लेकिन अगर मै सच बोलू तो कभी कभी हो भी जाती हु की हे भगवन इसे जरुरत क्या है इतनी अच्छी हिंदी बोलने की अगर ये हम लोग जैसे भी बात करे तो क्या काम नहीं चलेगा पर बाद में लगता है की नहीं यहाँ पर हम गलत है और ये उसकी खूबी है ,
                    बहुत आसान सी और सीधी ,सच्ची बात है की अगर हम किसी से दोस्ती करते है तो उस इंसान की सीरत से ज्यादा सूरत पर ध्यान देते है ये देखते है की उसका स्टीटस कैसा है पर ये ऐसा शक्श है जिसको मैंने सबसे बात करते हुए देखा है पढने में अच्छा है ,लेख भी अच्छा  लिखता है बस समझ होनी चाहिए उसको समझने की अरे भाई दिक्कत होती है तो बस हिंदी की मैंने तो बस उसके कुछ हलके शब्दों को ही बयान किया है अभी अरे जब आप उस से मिल कर बात करेंगे तो सच्चाई खुल कर सामने आएगी उसकी शुद्ध हिंदी की .पर कभिजब ये हम जैसी आसान हिंदी बोलते है तो लगता है की हा अपने ही बीच का कोई है वरना यही लगता है की ना जाने कहा से सिख कर आये है .
                  कोलेज आते है रोज पर रोज की तरह ३० मिनट देरी से और आते ही आते अपने गुरु जी के पैर छु कर प्रणाम करते है उसके बाद जो पढ़ाई हुई तो ठीक वरना मस्त हो कर अपने में ही गुनगुनाते हुए चले जाते है मन हुआ तो बोले वरना जरुरत नहीं है ये हमेशा ऐसे दुःख भरे गाने सुनते है जैसे दुसरे देवदास यही है खैर अपनी अपनी पसंद ...............
                   आंखे होती है दिल की जुबान कहना आसान पर समझना मुश्किल पर ये जैसे सूरत से बच्चे लगते है वैसे ही दिल से  भी वो इसलिए क्योकि जो दिल में वो ही जुबान पर और जो जुबान पर वो ही दिल पर होता है पर अभी अभी मैंने खुद ही कहा की समझना मुश्किल होता है ठीक उसी तरह कभी कभी लगता है मुझे भी की आँखों में कुछ और दिल में कुछ और ही है वो इस लिए क्योकि जो सूनापन इनकी आँखों में है क्या वो दिल में भी हो सकता है
            कभी कभी आशीष मुझे एक अनसुलझी सी पहेली लगने लगता है जान कर भी लगता है नहीं जाना तो कभी लगता है की अनजाना हो कर भी जाना पहचाना है शायद यही कारण है की इसके बारे में लिखने में मुझे इतना समय लग गया कहने को तो अभी और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है पर किसी भी इंसान की बुराई और अच्छाई दोनों की जाए तो शायद समय कम पद जाए.
          रंग है गोरा कद है छोटा, मस्तानी इनकी चाल है,
          देख कर इनको, लोग भूले अपने हाल है.
           नाम है इनका रसिया ,लोगो को बड़ा है भाते ,
             रंग है गोरा कद है छोटा,मस्तानी इनकी चाल है, 

1 comment:

Rohit Misra said...

ashish ko tumne badi hi bareeki se dekha hai..achcha prayas hai likhne ka.
badhai.