चाहतो पर जीते है, चाहतो पर मरते है,
चाहत है जीत तो चाहत है हार,
जिद्द में है चाहत तो शांति में भी है चाहत,
हर पल में है चाहत तो, हर झिन्न में है चाहत,
चाहत चाहत चाहत हाय ये चाहत ,
कब ख़त्म होगी ये चाहत........
चाहत एक ऐसी चिड़िया का नाम है जो कभी नहीं मरती ,उडती रहती है और दूर दूर तक जाती है कभी ये चाहत बनती है किसी को तो कभी ये बर्बाद कर देती है ,चाहत कभी अची है तो कभी बुरी बन जाती है इसी चाहत के चक्कर में बर्बाद होते तो बहुतो को आबाद होते भी देखा है मैंने . इस चाहत से काफी करीबी रिश्ता है हमारा कभी अपनी ख़ुशी को लेकर होती है ये चाहत तो कभी दुसरो की बर्बादी को ले कर होती है चाहत, कभी जलन में छुपी होती है ये चाहत और कभी-कभी किसी चीज़ को पाने की भी होती है ये चाहत .

चाहत की शुरुआत हमारे पैदा होते ही हो जाती है जब हम पैदा हुए थे और गोद में थे तब दूध की बोतल की चाहत थी क्योकि उस समय हमे अगर कुछ पता था तो वो थी भूख तो मुझे लगता है वो चाहत जायज थी ,और जब थोड़े बड़े हुए तो खिलोनो की चाहत खुद के पास भी है खिलोने पर दुसरो के खिलोनो को देखकर उसको अपना बनाने की चाहत और फिर उसके बाद स्कूल जाने से पहले ही जब अपने से बड़े भाई बहनों को देखा स्कूल जाते हुए तब मेरा भी मन हुआ की मै भी जाऊ पर अगर जाना संभव होता तो घर वाले जरुर भेजते ये न समझते हुए जिद्द करते हुए स्कूल जाने की चाहत और जब सकूल जाने लगे तब अछे बैग अच्छी बुक और अछे पेंसिल,रबर और ऊनिफार्म की चाहत , और जब इन सभी की बाते हो ही गई है तो टाफी और चाकलेट कहा छुट सकती है और कई बार तो ये भी देखा गया है की घर के लोग अगर मन किया तो कभी कभी बच्चो को चोरी करते भी देखा गया है वो चोरी इसलिए होती है क्योकि वह पर बात होती है तो सिर्फ चाहत की ,और फिर अभी तो बचपना है और बचपने में इतनी चाहत जब एक बच्चे को समझ नहीं होती है तो सोचो जरा बड़े होने पर तो चाहतो के ढेर लग जाते है और कभी कभी उन्ही चाहतो के कारण लोग गुनाह करने पर मजबूर हो जाते है
चाहत है जीत तो चाहत है हार,
जिद्द में है चाहत तो शांति में भी है चाहत,
हर पल में है चाहत तो, हर झिन्न में है चाहत,
चाहत चाहत चाहत हाय ये चाहत ,
कब ख़त्म होगी ये चाहत........
चाहत एक ऐसी चिड़िया का नाम है जो कभी नहीं मरती ,उडती रहती है और दूर दूर तक जाती है कभी ये चाहत बनती है किसी को तो कभी ये बर्बाद कर देती है ,चाहत कभी अची है तो कभी बुरी बन जाती है इसी चाहत के चक्कर में बर्बाद होते तो बहुतो को आबाद होते भी देखा है मैंने . इस चाहत से काफी करीबी रिश्ता है हमारा कभी अपनी ख़ुशी को लेकर होती है ये चाहत तो कभी दुसरो की बर्बादी को ले कर होती है चाहत, कभी जलन में छुपी होती है ये चाहत और कभी-कभी किसी चीज़ को पाने की भी होती है ये चाहत .


कहने को तो ये किताबी बाते लगती है पर जरा गौर फरमाइए तो महसूस होगा की नहीं ये जिंदगी का कड़वा सच है जो की गले में अटका हुआ हुआ है जिसे न ही निगला जा सकता है और न ही उगला जा सकता है ,कही-कही चाहत सही है तो कही कही गलत है बस अगर चाहत को सही नजरिये से देखा जाए तो बहुत अच्छी है पर वही गलत तरीका अपनाया जाये तो गलत है
सोचने की बात है की बचपने में ये चाहत इतना डरावना रूप ले सकती है तो बड़े होने पर क्या नहीं हो सकता हमे तो लगता है चाहत को छोड़ सप्ने की ओर भागना ज्यादा बेहतर होगा
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