Wednesday, February 16, 2011

गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागु पाय ,बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताये.......

"जिंदगी जीने का नाम है तो , कभी जिंदगी सीखने का नाम है "
                             बदलाव तो नियति का नियम है फिर वो किसी भी रूप में हो एक छोटे कड़ में हो या बड़े से पहाड़ में हो , परिवर्तन तो होता ही है और इसी परिवर्तन से सीखने को भी बहुत कुछ मिलता है और अगर सीखने की बात करे तो जरुरी नहीं की सिखाने वाला एक अध्यापक ही हो बल्कि सिखाने वाला वो एक छोटा सा बच्चा भी हो सकता है जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते है ज्यादातर लोग सोचते है की एक छोटा सा बच्चा भला क्या सिखा सकता है लेकिन कभी जाने अनजाने में वो भी ज्ञान की बाते कर ही जाता है हमने बहुत जगह पढ़ा व सुना है की सीखने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है .
                                 प्राय: सीखने की शुरुआत हमारे जन्म के साथ ही हो जाती है और ये कोई नयी बात नहीं है जो बताई जाए फिलहाल अगर बात की जाए अध्यापक की उनका तो हमारी लाइफ में एक खास स्थान होता है, हम जब क्लास ६ में थे तब हमारी हिस्टरी की मैडम थी जो सभी बच्चो को प्यार तो बहुत करती थी साथ ही साथ पिटाई भी बहुत करती थी फिर वो शैतानी  हो या पढाई के लिए हो लेकिन जो चीज हम खेल-खेल में सीख लेते वो मार पीट कर नहीं सीख सकते .लेकिन जब अध्यापक प्यार करे तब तो बहुत अछी है पर जहा पिटाई हुई बस शुरू हुई अध्यापको की बुराई और मुझे नहीं लगता की ये सिर्फ मेरे साथ ही हुआ होगा , हुआ तो होगा कभी न कभी तो आपके साथ भी मानो या मानो ........



                             कुछ बाते ऐसी होती है जो सभी लोगो के बीच कॉम्मन होती है जैसे सजा के नाते सीट पर खड़े होना , झुक कर पैरो को छुते हुए खड़ा होना ,लड़का है तो मुर्गा और लड़की है तो मुर्गी ,वैसे तो लडकियों को मिलती नहीं है ये सजा,तो कभी कभी अगर लडको को मिली सजा तो भी अध्यापक की बुराई शुरू हो ही जाती है मतलब अगर सीधी बात में कहा जाए तो अध्यापको के पीठ पीछे अक्सर मजाक उड़ाने का मौका मिल जाता ही है,और जब सजा मिलती और क्लास ख़त्म हो जाने बाद दोस्तों से बाद में कहना की "अच्छा हुआ यार चिपकू की क्लास नहीं झेलनी पड़ी और बता क्या पढाया गया "
         कुछ बाते होती तो बहुत छोटी सी है पर समझने में ही समय लग ही जाता है ,बहुत सी बाते माता-पिता सिखाते है तो कभी अध्यापक , तो कभी सिखा जाता है वक़्त ,अगर हम वक़्त की सीख की बात करे तो उस सीख में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है पर समझ में भी वक़्त की मार से ही ज्यादा आता भी है ,पर वही अगर हमारे मम्मी पापा सिखाते है तो हम उन परेशानियों से बचते तो है लेकिन उतना अच्छे से सीख नहीं पाते ,ऐसी ही बातो को सिखाने के लिए और काबिल बनाने के लिए ही तो हमारा दाखिला स्कूलों में कराया जाता है और उसी स्कूल में कुछ सीखते है और बहुत मस्ती भी होती है .
         स्कूल..........वहा तो डाट पड़ती है पिटाई होती है तो कभी सजा भी मिलती है लेकिन जो अध्यापक हमे सजा देते है और वही हमारे मार्गदर्शक भी बन जाते है,
         स्कूल की जिंदगी जब जीते थे तब लगता है हे भगवान् कब ख़त्म होंगे ये दिन और जब ख़त्म हुए तब और बाद में जब  मिलते थे दोस्तों से और जब बाते होती थी तो बातो ही बातो में बात निकल ही आती है की "काश वो स्कूल के दिन वापस आ पाते तो कितना मज़ा आता "अरे दोस्तों सच में जो भी कहो स्कूल के दिन सच में बहुत सुहावने होते ही है "वो सुबह का उठाना जल्दी-जल्दी तैयार होना और न तैयार हुए और रिक्शे का आ जाना और फिर वही डाट पड़ना और रिक्शे वाले का बाहर इन्तजार करना और चिल्ला कर कहना "जल्दी करो चलना है या नहीं " . अद्यापक का क्लास में  आना और एक रिदम में चिल्ला कर कहना "goooood moornig madammm " अध्यापक का ही सिखाया हुआ और उनके लिए उनके आदर में ही  ना बोला जाए तब तो फिर उस पर भी सजा ही मिलती ओके बच्चो आपको सिखाया गया था भूल गए न चलो अब आप लोग १० मिनट खड़े रहेंगे सजा पर सजा ............
           स्कूल की बाते करने बैठो तो बाते है जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती वो गेम टाइम में खेलना और लंच टाइम से पहले ही खाना ख़त्म हो जाना और अध्यापक का क्लास में आगे पढाते रहना ..........
            हर अध्यापक के नाम रखना कही मोटू ,खरगोश ,अरे पता है मेरे एक सर थे क्लास ६ में हमको अंग्रेजी पड़ते थे अरें उनका तो कोट पैंट जो पहनते थे और सबसे बड़ी बात वो पूरी ठंडी भर एक ही कोट पैंट पहनते थे तो फिर कहा कोई बच्चा मजाक उड़ाने में चुक सकता है और पता है सब क्या कहते थे सोचो..........."अरे ये तो शादी का पहन कर आये है "
           ये स्कूल के दिन होते ही सुहावने है फिर वो आपके स्कूल के दिन हो या हमारे, आते तो है ही याद और फिर बात आ जाती है यादो की यादे तो होती ही अच्छी है फिर वो अच्छी हो या बुरी हो...................

3 comments:

target said...
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Bhawna Tewari said...

purane dino ki yaad dila di

Mukul said...

वही भाषा साहितियक और किताबी हो जा रही है अध्यापक ,प्राय जैसे शब्द के इस्तेमाल से बचो