Thursday, March 3, 2011

अपना सपना मनी मनी

Admin
पैसे की शुरुवात होती है हमारे जन्म से और अंत होता है हमारे अंत के साथ 
पैसा जिंदगी की जरुरत है और ये बहुत ही कड़वा सच है जिसे बहुत लोग मानने से भी इनकार करते है वो शायद इसलिए क्योकि कहा गया है की "सच कड़वा होता है " कोई माने या न माने और फिर किसी के मानने से सच झूठ और झूठ सच नहीं हो जाता .पैसे के पीछे तो दुनिया का हर शख्स भागता है ,फिर चाहे वो गरीब हो या अमीर चहिये तो सभी को पैसा बच्चे को चाकलेट के लिए माँ बाप को उसकी पढाई के लिए बच्चा थोडा बड़ा हुआ तो साईकिल ,खिलोने फिर कुछ सालो बाद गाडी और इन फ़र्माइसो को पूरा करने के लिए माँ बाप को दुगनी और कभी कभी तिगुनी महनत की जरुरत भी पड़ जाती है . अमीर को भी पैसा चाहिए और गरीब को भी पैसा चाहिए और इसी भागा दौड़ी में अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जा रहा है जिससे जिनके पास ज्यादा पैसा है वो लोग कम पैसे वालो का शोषण होता है भले ही ये किताबी बाते लगे लेकिन ये सच है हम इसको किताबी बाते इसलिए कह सकते है क्योकि हम जिस दुनिया में जीते है वह पर लोग आँखे बंद कर के ही जीना पसंद करते है बल्कि ऐसा नहीं होना चाहिए अक्सर देखा गया है की अगर किसी दो पहिया वाले की और एक कार वाले की टक्कर होती है तो उसमे दोषी हमेशा दो पहिये वाली गाड़ी की ही गलती होती है और अगर दो पहिये वाली गाड़ी और साईकिल की टक्कर हो तो उसमे दोषी साईकिल वाला ही हमेशा होता है क्योकि हर इंसान अपने पैसो के दम पर अपने से गरीब को दबाना ही चाहता है शयद ये प्रकृति का नियम ही है जैसे कुत्ता बिल्ली को खाता है बिल्ली चूहे को और चूहा फिर किसी और को खाता है ये चक्र यू ही चलता रहता है सबसे बड़ा सवाल क्या एक अमीर इंसान की नजरो में एक गरीब इंसान इंसान नहीं रह जाता है ? एक गरीब का खून बहता है तो उसको अहमियत नहीं दी जाती और वही अगर एक अमीर का एक बूँद ही निकल आये तो हाय तोबा हो जाती है और फिर मुझे नहीं लगता की गरीब के शरीर में खून की जगा पानी होता है और फिर जिसे मानना है माने क्योकि ये स्वतंत्र विचारो की दुनिया है कोई भी कुछ भी सोच और बोल सकता है बिना किसी बंधिश के
अधिकार सभी के बराबर है सविधान के अनुसार जिसे हम सभी समानता का अधिकार कर कर जानते है लेकिन मुझे जहा तक लगता है ये है सिर्फ किताबी बाते वो इसलिए क्योकि जहा पर समानता की बात आती है द्व्वेश भेद भाव की बात आती है अमीर और गारी की बात आ ही जाती है और फिर जब अमीर गरीब की बात आई तो वैसे ही गरीब को पैसा दे कर और अगर पैसा नहीं लिया दिया गया तो धमकी दे कर द्र धमका दिया जाता है और फिर उससे जो भी काम करवाना है करवा लिया जाता है ...................है न अजीब बात सोचो तो अजीब और अगर ना सोचो तो कही कुछ नहीं होता दुनिया बहुत अच्छी है 
                                    एक बच्चा भी पढाई करता है तो उसका मकसद पैसा ही होता है भले ही वो माने या न माने पर आखिरी समय जब पढाई खत्म होने वाली होती है तब लगता है की नहीं यार कम से कम अब तो कुछ कमाना ही चाहिए कब तक माँ बाप के पैसे उड़ाते रहेंगे तब समझ में आता है की पैसो की कीमत क्या है जब हम घर में पैसे मांगते है और मम्मी का जवाब आता है की कितना खर्च करते हो फालतू के खर्चे बंद करो वरना पापा से बोल दूंगी तब भी लगता है की कम से कम अब तो कमाना ही चाहिए यार.............कभी कभी हमारे सर हम सभी से मजाक में बोलते है की क्यों मजा आया क्लास में और जब बच्चो का जवाब हा आता है तो कहते है की बच्चो मुझे पैसे ही बोलने के मिलते है ,पहले लगता था की ये एक मजाक है पर नहीं इस मजाक में जिंदगी की पूरी खुशिया और गम मिलते और बिछड़ते है 
                                    है सच पर कड़वा है 
                                                अपना बना सको तो सच्चा है,
                                           हर सच की अपनी कहानी 
                                                          और अपना फ़साना है 
                                                                                               लव यू लाइफ 

Monday, February 28, 2011

हैरान - परेशान


जरुरी है कभी किसी को जानना तो कभी किसी को पहचनना  ,जरुरी नहीं की उसको सूरत  से पहचाना जाए बल्कि जरुरी ये है की पहचाना उसकी सीरत से जाए            
            रोज हम कुछ न कुछ सोचते है और किसी न किसी के बारे में बात करते ही रहते है और जिसके बारे में हम बात कर रहे है कभी-कभी वो शक्श ऐसा होता है की हमे लगता है की वो ऐसा क्यों है? या वो कैसा है? क्या वो उसकी अच्छाई है या बुराई है ? ये सोचने पर हम मजबूर हो जाते है और फिर ये तो निर्भर करता है उसकी उन बातो पर जिन पर हम गौर फरमा रहे होते है तो आज हम लिखने वाले है ऐसे ही एक शक्श के बारे में जो की मेरे ही साथ पड़ता है मेरी ही क्लास में,किसी के बारे में अच्छी तरह से कहना थोडा कठिन हो जाता है जब हम उसे जानते तो है मगर बहुत अच्छी तरह न जानते हो लेकिन उसको रोज देखते है और फिर भले ही हम किसी को जाने या न जाने पर उसकी कुछ बातो पर ध्यान तो जाता ही है तो फिलहाल हम जिन जनाब का जिक्र कर रहे है उनका नाम है"माननीय आशीष"जिनका परिचय हम आपसे करवाने वाले है, जी हा हम जानते है की इतनी शुद्ध हिंदी देख कर आप सोच में पड़ गए होंगे की इसे क्या हुआ अभी-अभी तो ठीक था मामला और बात भी अच्छे से कर रही थी पर अब क्या हुआ जो इतनी शुद्ध हिंदी शुरू कर दी अरे भाई ये खाशियत है आशीष जी की .कोई इनसे छोटा हो या बड़ा हो ये जनाब पुरे आदर सम्मान के साथ ही बात करते है ये कभी भी किसी से बात करते समय अगर उनका नाम लेते भी है तो"जी" जरूर लगाते है और जनाब बात भी शुद्ध हिंदी में ही करते है जबकी ऐसा नहीं है की इनको अंग्रेजी आती नहीं है,बल्कि ये हिंदुस्तान की हिंदी "भाषा" को अधिक महत्व देते है ये भी इनकी एक खासियत है हिंदी के शब्द जैसे "अहमियत,जागरूक,सहमति" इत्यादि जो की इनकी बोल-चाल की भाषा में से ही कुछ शब्द है
और जब ये शुद्ध हिंदी में बात करना शुरू करते है तो फिर क्या बताऊ कुछ समझ में आती है तो कुछ चली जाती है सिर के ऊपर से ऐसा नहीं है की ये सभी को पारेशान करते है बल्कि वो समझ में नहीं आती है लेकिन अगर मै सच बोलू तो कभी कभी हो भी जाती हु की हे भगवन इसे जरुरत क्या है इतनी अच्छी हिंदी बोलने की अगर ये हम लोग जैसे भी बात करे तो क्या काम नहीं चलेगा पर बाद में लगता है की नहीं यहाँ पर हम गलत है और ये उसकी खूबी है ,
                    बहुत आसान सी और सीधी ,सच्ची बात है की अगर हम किसी से दोस्ती करते है तो उस इंसान की सीरत से ज्यादा सूरत पर ध्यान देते है ये देखते है की उसका स्टीटस कैसा है पर ये ऐसा शक्श है जिसको मैंने सबसे बात करते हुए देखा है पढने में अच्छा है ,लेख भी अच्छा  लिखता है बस समझ होनी चाहिए उसको समझने की अरे भाई दिक्कत होती है तो बस हिंदी की मैंने तो बस उसके कुछ हलके शब्दों को ही बयान किया है अभी अरे जब आप उस से मिल कर बात करेंगे तो सच्चाई खुल कर सामने आएगी उसकी शुद्ध हिंदी की .पर कभिजब ये हम जैसी आसान हिंदी बोलते है तो लगता है की हा अपने ही बीच का कोई है वरना यही लगता है की ना जाने कहा से सिख कर आये है .
                  कोलेज आते है रोज पर रोज की तरह ३० मिनट देरी से और आते ही आते अपने गुरु जी के पैर छु कर प्रणाम करते है उसके बाद जो पढ़ाई हुई तो ठीक वरना मस्त हो कर अपने में ही गुनगुनाते हुए चले जाते है मन हुआ तो बोले वरना जरुरत नहीं है ये हमेशा ऐसे दुःख भरे गाने सुनते है जैसे दुसरे देवदास यही है खैर अपनी अपनी पसंद ...............
                   आंखे होती है दिल की जुबान कहना आसान पर समझना मुश्किल पर ये जैसे सूरत से बच्चे लगते है वैसे ही दिल से  भी वो इसलिए क्योकि जो दिल में वो ही जुबान पर और जो जुबान पर वो ही दिल पर होता है पर अभी अभी मैंने खुद ही कहा की समझना मुश्किल होता है ठीक उसी तरह कभी कभी लगता है मुझे भी की आँखों में कुछ और दिल में कुछ और ही है वो इस लिए क्योकि जो सूनापन इनकी आँखों में है क्या वो दिल में भी हो सकता है
            कभी कभी आशीष मुझे एक अनसुलझी सी पहेली लगने लगता है जान कर भी लगता है नहीं जाना तो कभी लगता है की अनजाना हो कर भी जाना पहचाना है शायद यही कारण है की इसके बारे में लिखने में मुझे इतना समय लग गया कहने को तो अभी और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है पर किसी भी इंसान की बुराई और अच्छाई दोनों की जाए तो शायद समय कम पद जाए.
          रंग है गोरा कद है छोटा, मस्तानी इनकी चाल है,
          देख कर इनको, लोग भूले अपने हाल है.
           नाम है इनका रसिया ,लोगो को बड़ा है भाते ,
             रंग है गोरा कद है छोटा,मस्तानी इनकी चाल है, 

Sunday, February 27, 2011

आंसू ...........

ठहरे रहते है ये किसी कोने में ,
मिलती है ख़ुशी या मन होता है उदास ,
झलक आते है ये निर्झर आँखों से ,
बड़े  ही अजीब होते है ये आंसू ,
दुखी मन को सांतुवना देते है ,
ख़ुशी में ये ख़ुशी का इजहार करते है ये आंसू ,
निकलते है ये कभी मजबूरी में ,
तो कभी कमजोर बनाते है ये आंसू,
निकलते है जब ये तन्हाई में ,
तो मजबूत बनाते है ये आंसू ,
इनकी कथा भी अजीब होती है,
कभी अपनों को दूर करते है ,
तो कभी गिरो को करीब लाते है ये आंसू , 

चाहते ............

चाहतो पर जीते है, चाहतो पर मरते है,
चाहत है जीत तो चाहत है हार,
जिद्द में है चाहत तो शांति में भी है चाहत,
हर पल में है चाहत तो, हर झिन्न में है चाहत,
चाहत चाहत चाहत हाय ये चाहत ,
कब ख़त्म होगी ये चाहत........
              चाहत एक ऐसी चिड़िया का नाम है जो कभी नहीं मरती ,उडती रहती है और दूर दूर तक जाती है कभी ये चाहत बनती है किसी को तो कभी ये बर्बाद कर देती है ,चाहत कभी अची है तो कभी बुरी बन जाती है इसी चाहत के चक्कर में बर्बाद होते तो बहुतो को आबाद होते भी देखा है मैंने . इस चाहत से काफी करीबी रिश्ता है हमारा कभी अपनी ख़ुशी को लेकर होती है ये चाहत तो कभी दुसरो की बर्बादी को ले कर होती है चाहत, कभी जलन में छुपी होती है ये चाहत और कभी-कभी किसी चीज़ को पाने की भी होती है ये चाहत .
            चाहत की शुरुआत हमारे पैदा होते ही हो जाती है जब हम पैदा हुए थे और गोद में थे तब दूध की बोतल की चाहत थी क्योकि उस समय हमे अगर कुछ पता था तो वो थी भूख तो मुझे लगता है वो चाहत जायज थी ,और जब थोड़े बड़े हुए तो खिलोनो की चाहत  खुद के पास भी है खिलोने पर दुसरो के खिलोनो को देखकर उसको अपना बनाने की चाहत और फिर उसके बाद स्कूल जाने से पहले ही जब अपने से बड़े भाई बहनों को देखा स्कूल जाते हुए तब मेरा भी मन हुआ की मै भी जाऊ पर अगर जाना संभव होता तो घर वाले जरुर भेजते ये न समझते हुए जिद्द करते हुए स्कूल जाने की चाहत और जब सकूल जाने लगे तब अछे बैग अच्छी बुक और अछे पेंसिल,रबर और ऊनिफार्म की चाहत , और जब इन सभी की बाते हो ही गई है तो टाफी और चाकलेट कहा छुट सकती है और कई बार तो ये भी देखा गया है की घर के लोग अगर मन किया तो कभी कभी बच्चो को चोरी करते भी देखा गया है वो चोरी इसलिए होती है क्योकि वह पर बात होती है तो सिर्फ चाहत की ,और फिर अभी तो बचपना है और बचपने में इतनी चाहत जब एक बच्चे को समझ नहीं होती है तो सोचो जरा बड़े होने पर तो चाहतो के ढेर लग जाते है और कभी कभी उन्ही चाहतो के कारण  लोग गुनाह करने पर मजबूर हो जाते है 
            कहने को तो ये किताबी बाते लगती है पर जरा गौर फरमाइए तो महसूस होगा की नहीं ये जिंदगी का कड़वा सच है जो की गले में अटका हुआ हुआ है जिसे न ही निगला जा सकता है और न ही उगला जा सकता है  ,कही-कही चाहत सही है तो कही कही गलत है बस अगर चाहत को सही नजरिये से देखा जाए तो बहुत अच्छी है पर वही गलत तरीका अपनाया जाये तो गलत है
             सोचने की बात है की बचपने में ये चाहत इतना डरावना रूप ले सकती है तो बड़े होने पर क्या नहीं हो सकता हमे तो लगता है चाहत को छोड़ सप्ने  की ओर भागना ज्यादा बेहतर होगा
                  

Saturday, February 19, 2011

रिश्तो में भी एक अजीब रिश्ता "मम्मी"

"लब्जो पे उसके कभी बदुआ नहीं आती ,
बीएस एक माँ है जो हमसे कभी खफा नहीं होती "
A Mother's Love"होता है रिश्तो में एक अजीब रिश्ता जो कहलाता है माँ " सच में इस रिश्ते का कोई मुकाबला नहीं है कोई भी हो वो अगर उससे पुचा जाए की ये बताओ की तुम सबसे ज्यादा किस से  प्यार करते हो इस पूरी दुनिया में, तो शायद उसका जवाब होता है माँ और मुझे नहीं लगता की ये कोई किताबी बात है क्योकि मम्मी का नाम ही काफी होता है एक बच्चे के लिए कहते है माँ एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही एक सकूँ सा महसूस होता है और ये सच है और ये एक ऐसा शब्द है जिसे बोलकर मनं से ही इस एहसास को समझा जा सकता है एहसास एक पर नाम अनेक जैसे माँ,मम्मी,अम्मी पर मिठास तो वही मिलती है चाहे कुछ भी कहा जाए, ऐसा नहीं है की अलग -अलग नाम पुकारने पर ममता का एहसास  अलग-अलग हो जाता है
               क्या कभी सोचा है किसी ने की एक छोटा बच्चा अगर रो रहा हो और उसकी मम्मी ने दूर बैठे ही बोल दिया की "आले ले ले त्या हुआ मेले बाबु तो त्यों लो लाहा है "बच्चा इतनी शांति से सुनने लगता है जैसे किसी ने उसे न जाने क्या दे दिया जो वो इतने ध्यान से सुनने लगा है है न एक अजीब बात और ये सिर्फ सुनने में ही अजीब नहीं है बल्कि देखने में भी अजीब होता है क्योकि ये एक अनोखे प्यार का सबूत है ,हर बच्चे की माँ उसके लिए दुनिया की सबसे अच्छी माँ होती है मेरी भी मम्मी सबसे अच्छी थी मेरे लिए वो गरम खाना देना, मेरे कपडे धुलना ,मेरी साडी इच्छाए पूरी करना और सबसे बड़ी बात अगर हमे कोई दिक्कत है तो बिना उनको बताये समझ जाना और मुझे नहीं लगता की एक माँ के अलावा ये कोई और जान सकता है पर कभी-कभी मेरी ही तरह कुछ लोगो की किस्मत बहुत बुरी होती है जिनको उंसी कभी-कभी इतना दूर हो जाना पड़ता है की छह कर भी मिल पाना मुमकिन नहीं हो पाता है नै अजीब बात पर इससे ये कही नहीं साबित होता है की बच्चो के लिए माँ का और माँ के लिए बच्चो का प्यार कम हो जाता है खैर ..........एहसास होता है कभी कभी un baato का भी .......
                    "sakht रातो में भी आसान  सफ़र लगता है ,
                      ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है ,
                       एक मुद्दत से मेरी माँ सोई नहीं ,
                         जब मैंने एक बार कहा था की मम्मी मुझे दर लगता है.........."
                 बच्चे अगर अच्छे है तो भी नाम होता है माँ का और अगर ख़राब है तो भी नाम होता है माँ का ..........
                                " इस चालबाज़ दुनिया में आँखे खोली तो तुम थी
                                 दुनिया के सफ़र में जब भी हिम्मत डोली तो तुम थी
हा तुम ही थी ऊँगली पकड़ कर जिसने चलना सिखाया
सख्त हवा के झोंको से हर पग पर बचाया था
तेरा ही आँचल था पहले होठो में दबाया था
                                   सबसे पहले जब भूख लगी ,तुझको ही बुलाया था
चूसा था अंगूठा तब मानो यु अमृत पिया
भीगी पलकों में आंसू थे तब तुने हँसा दिया
हर गम को सीने में तुने यु दबा लिया
                                       मानो इस दुनिया में मुझको कोई गम ना दिया
                                        लगता है मुझको ऐसा की तू ही मेरी खुदाई थी
तेरे आँचल के नीचे मेरी साड़ी दुनिया समाई थी "

An afternoon stroll
 माँ कुछ यु ही चलना सिखाती है

कहने को तो  बहुत कुछ है पर कहा तक कहा जाए क्योकि ये बाते तो ऐसी है जिंसेसे  कोई भी अनजान नहीं है क्योकि जहा चार लग बैठे हो वही बात होती है घर की और फिर ऐसा कहा है की बात हो घर की और मम्मी छूट जाए क्योकि होता कुछ ऐसा है मेरी मम्मी खाना बहुत अच्छा बनती है तो कही मेरी मम्मी ने खिलोने दिलाये तो कभी मेरी मम्मी से लड़ाई हो गई ,कभी कोई कहता है की मेरी मम्मी आलू के पराठे अच्छे बनती है तो कोई कहता की छोले हर बात में मम्मी आ ही जाती कभी चाह कर तो कभी अनचाहे भी , कॉलेज से घर जाना है तो मम्मी के हाथ का खाना पानी चाहिए या फिर घर से कॉलेज तब भा मम्मी ही याद आती है है न अजीब बात एक ही ओरत के कितने रूप होते है माँ,बेटी,बाहें,तो कभी बीबी
वहत अबाउट उ?
            याद आता है कभी हमारे दर्द में उनको भी दर्द को महसूस करते और देखा है वो भी मेरे होठो पर मुस्कराहट देख उनके होठो पर भी हसी आती देख ,अब आता है याद कितनी उम्मीदों के साथ वो हमे पालती पोषती है.
"होती है रिश्तो में भी एक अजीब कशिश "

Wednesday, February 16, 2011

"कुछ इस तरह "

"गुजरे है दिन कुछ इस तरह उनके प्यार में ,
कल साथ हमने काटे आज उनके याद में ,
उनसे क्या कहे किस्मत की है बात ,
मौत ने भी की है बेवफाई मेरे साथ ,
गम ये नहीं की उसने कसम खा कर तोड़ी ,
गर सीखना है बेवफाई तो तुम इनसे सीख लो ,
दिल कैसे तोड़े जाते है तुम इनसे पूछ लो"

गुरु गोबिंद दोउ खड़े काके लागु पाय ,बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो बताये.......

"जिंदगी जीने का नाम है तो , कभी जिंदगी सीखने का नाम है "
                             बदलाव तो नियति का नियम है फिर वो किसी भी रूप में हो एक छोटे कड़ में हो या बड़े से पहाड़ में हो , परिवर्तन तो होता ही है और इसी परिवर्तन से सीखने को भी बहुत कुछ मिलता है और अगर सीखने की बात करे तो जरुरी नहीं की सिखाने वाला एक अध्यापक ही हो बल्कि सिखाने वाला वो एक छोटा सा बच्चा भी हो सकता है जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते है ज्यादातर लोग सोचते है की एक छोटा सा बच्चा भला क्या सिखा सकता है लेकिन कभी जाने अनजाने में वो भी ज्ञान की बाते कर ही जाता है हमने बहुत जगह पढ़ा व सुना है की सीखने की प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है .
                                 प्राय: सीखने की शुरुआत हमारे जन्म के साथ ही हो जाती है और ये कोई नयी बात नहीं है जो बताई जाए फिलहाल अगर बात की जाए अध्यापक की उनका तो हमारी लाइफ में एक खास स्थान होता है, हम जब क्लास ६ में थे तब हमारी हिस्टरी की मैडम थी जो सभी बच्चो को प्यार तो बहुत करती थी साथ ही साथ पिटाई भी बहुत करती थी फिर वो शैतानी  हो या पढाई के लिए हो लेकिन जो चीज हम खेल-खेल में सीख लेते वो मार पीट कर नहीं सीख सकते .लेकिन जब अध्यापक प्यार करे तब तो बहुत अछी है पर जहा पिटाई हुई बस शुरू हुई अध्यापको की बुराई और मुझे नहीं लगता की ये सिर्फ मेरे साथ ही हुआ होगा , हुआ तो होगा कभी न कभी तो आपके साथ भी मानो या मानो ........



                             कुछ बाते ऐसी होती है जो सभी लोगो के बीच कॉम्मन होती है जैसे सजा के नाते सीट पर खड़े होना , झुक कर पैरो को छुते हुए खड़ा होना ,लड़का है तो मुर्गा और लड़की है तो मुर्गी ,वैसे तो लडकियों को मिलती नहीं है ये सजा,तो कभी कभी अगर लडको को मिली सजा तो भी अध्यापक की बुराई शुरू हो ही जाती है मतलब अगर सीधी बात में कहा जाए तो अध्यापको के पीठ पीछे अक्सर मजाक उड़ाने का मौका मिल जाता ही है,और जब सजा मिलती और क्लास ख़त्म हो जाने बाद दोस्तों से बाद में कहना की "अच्छा हुआ यार चिपकू की क्लास नहीं झेलनी पड़ी और बता क्या पढाया गया "
         कुछ बाते होती तो बहुत छोटी सी है पर समझने में ही समय लग ही जाता है ,बहुत सी बाते माता-पिता सिखाते है तो कभी अध्यापक , तो कभी सिखा जाता है वक़्त ,अगर हम वक़्त की सीख की बात करे तो उस सीख में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है पर समझ में भी वक़्त की मार से ही ज्यादा आता भी है ,पर वही अगर हमारे मम्मी पापा सिखाते है तो हम उन परेशानियों से बचते तो है लेकिन उतना अच्छे से सीख नहीं पाते ,ऐसी ही बातो को सिखाने के लिए और काबिल बनाने के लिए ही तो हमारा दाखिला स्कूलों में कराया जाता है और उसी स्कूल में कुछ सीखते है और बहुत मस्ती भी होती है .
         स्कूल..........वहा तो डाट पड़ती है पिटाई होती है तो कभी सजा भी मिलती है लेकिन जो अध्यापक हमे सजा देते है और वही हमारे मार्गदर्शक भी बन जाते है,
         स्कूल की जिंदगी जब जीते थे तब लगता है हे भगवान् कब ख़त्म होंगे ये दिन और जब ख़त्म हुए तब और बाद में जब  मिलते थे दोस्तों से और जब बाते होती थी तो बातो ही बातो में बात निकल ही आती है की "काश वो स्कूल के दिन वापस आ पाते तो कितना मज़ा आता "अरे दोस्तों सच में जो भी कहो स्कूल के दिन सच में बहुत सुहावने होते ही है "वो सुबह का उठाना जल्दी-जल्दी तैयार होना और न तैयार हुए और रिक्शे का आ जाना और फिर वही डाट पड़ना और रिक्शे वाले का बाहर इन्तजार करना और चिल्ला कर कहना "जल्दी करो चलना है या नहीं " . अद्यापक का क्लास में  आना और एक रिदम में चिल्ला कर कहना "goooood moornig madammm " अध्यापक का ही सिखाया हुआ और उनके लिए उनके आदर में ही  ना बोला जाए तब तो फिर उस पर भी सजा ही मिलती ओके बच्चो आपको सिखाया गया था भूल गए न चलो अब आप लोग १० मिनट खड़े रहेंगे सजा पर सजा ............
           स्कूल की बाते करने बैठो तो बाते है जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती वो गेम टाइम में खेलना और लंच टाइम से पहले ही खाना ख़त्म हो जाना और अध्यापक का क्लास में आगे पढाते रहना ..........
            हर अध्यापक के नाम रखना कही मोटू ,खरगोश ,अरे पता है मेरे एक सर थे क्लास ६ में हमको अंग्रेजी पड़ते थे अरें उनका तो कोट पैंट जो पहनते थे और सबसे बड़ी बात वो पूरी ठंडी भर एक ही कोट पैंट पहनते थे तो फिर कहा कोई बच्चा मजाक उड़ाने में चुक सकता है और पता है सब क्या कहते थे सोचो..........."अरे ये तो शादी का पहन कर आये है "
           ये स्कूल के दिन होते ही सुहावने है फिर वो आपके स्कूल के दिन हो या हमारे, आते तो है ही याद और फिर बात आ जाती है यादो की यादे तो होती ही अच्छी है फिर वो अच्छी हो या बुरी हो...................

Friday, February 11, 2011

ek aisa bhi vaada



है  बहुत सी बाते जो कहना चाहते है हम अपनों से ,
कभी परिवार से तो कभी दोस्तों से ,
चाहते है एक वादा हम अपनों से ,
करते भी है एक वादा हम अपनों से ,
छोटो से भी एक वादा ,
बड़ो से भी एक वादा ,
है वादों के भी कितने पहलु ,
कभी-कभी वादा निभाते है तो ,
कभी जाते है भूल ,
फिर होता है एक वादा की,
ना तोड़ेंगे अब कोई वादा      

Thursday, February 10, 2011

anjaaaaaan sa pahloooo.........


कुछ जानी सी तो कुछ अनजानी सी ,
कुछ पसंद सी तो कुछ नपसंद सी ,
कभी ले कर आती आंसू तो कभी ले कर आती मुस्कुराहट,
है कुछ जानी सी तो कुछ अनजानी सी,
करो जानने की कोशिश तो और उलझती सी,
है कुछ बचपन सी तो कुछ बुढ़ापे सी,
है कुछ खेल सी तो कुछ उदासी सी ,
है कुछ छोटी सी बात तो कुछ बड़ी सी ,
करो जानने की कोशिश तो और उलझती सी,
है कुछ जानी सी तो कुछ अनजानी सी,
है कभी पहेली सी तो कुछ सुलझी सी,
है कुछ ऐसी ही जिन्दगी ,

जिंदगी का नया मोड़ 
कभी लगे लम्बी तो कभी लगे ये छोटी सी ,
 कभी करे दिल जीने का तो कभी लगे बस..... ,
है कुछ जानी सी तो कुछ अनजानी सी .......  

Friday, January 28, 2011

दोस्ती का रिश्ता

दोस्ती का रिश्ता.... शब्द आसान पर मतलब कठिन. शब्द का मतलब समझने चलो तो समझने में कहो कितने ही दिन निकल जाये -
      " दोस्ती गीत है और गजल भी है दोस्ती ,
       दोस्ती उम्मीद है  तो तरंग भी है दोस्ती ,
       दोस्ती ताकत है तो कमजोरी भी है दोस्ती ,
       दोस्ती दिल से निकली दुआ है तो प्रार्थना भी है दोस्ती ,"


दोस्ती के कई रंग है बस समझ है हमारे समझने की,की हम अपने दोस्त को कितना समझ पाते है ,दोस्ती भी एक रिश्ता है जैसे मम्मा , पापा ,भाई ,बहन इन सब की तरह ही एक दोस्त भी होता है .जब हम छोटे थे यानी की नर्सरी में तब भी हमारे दोस्त थे लेकिन तब हमे समझ नहीं थी की ये रिश्ता है या टाइम पास .बहुत पुरानी कहावत है किसी भी रिश्ते को बनाने में टाइम लगता है पर बिगड़ते समय सेकंड्स में ही बिगड़ हो जाता है खैर फिलहाल हम बात कर रहे है दोस्ती की दोस्तों की बात करे तो दोस्तों की संख्या तो बहुत है पर उनमे कुछ खास है जैसे विश्वविधालय में पल्लवी मोर्या .इनके बारे में क्या कहे "बला की खुबसूरत है की कुछ कहा नहीं जाता" खूबसूरती के साथ साथ भगवन ने  इनको दिमाग भी इनकी ख़ूबसूरती के हिसाब से ही है कहते है आँखे दिल की जुबान होती है सच ही है वो इसलिए की जो इनके दिल में होता है वो साफ़ इनकी आँखों में दिखाई दे ही जाता है .दोस्ती एक खूबसूरत पहचान है जो बिना किसी स्वार्थ क निभाई जाये तब तक अच्छी लगती है पर अगर इसमें किसी तरह का स्वार्थ आ जाये तो दोस्ती दोस्ती नहीं रह जाती इस बात को वो अच्छी तरह समझती शायद यही कारण है की हमारे बीच कभी कोई समस्या नहीं हुई ये दोस्ती की ही एक पहचान होती है वो उसका भोलापन वो मासूमियत और वही एक बच्चे की तरह शरारत करना और मेरी कोई भी समस्या हो उसको अपनी समस्या बना लेना I 
उसे  देखकर  लगता  है  के ख़ूबसूरती  और   अच्छाई  का  सही  तालमेल  क्या  होता  है, उस पर यह लाइन बड़ी स्टिक बैठती है "अति का भला न बोलना , अति की भली न चुप" बस उतना बोलती है जितना जरूरी हो...न ही किसी से बैर है, न कोई शिकवा....ज़िन्दगी जीने का अलग ही ढंग है उसका... सबसे खूबसूरत आँखें हैं उसकी , बड़ी-बड़ी काली आँखें जिनमे कोई भी डूब जाये...पर उन आँखों से ज्यादा खूबसूरत है उसका दिल ...सबकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहती है....ज़िन्दगी की खूबसूरत इनायत है वो ....
ज़िन्दगी को खूबसूरती के साथ जीने की कला आती है उसको, हर पल को एक जीवन्तता के साथ जीते हुए ज़िन्दगी की राहों में आगे बढती  ही जाती है...खूबसूरती के मायने सिर्फ चेहरे का खूबसूरत होना ही नही बल्कि दिल का खूबसूरत होना है और ये बात मैंने उस शक्स से सीखी है जिसने हर पल हर कदम मेरा साथ दिया है , सिर्फ दोस्त ही नहीं एक साथी का फ़र्ज़ भी अदा किया है उसने...ज़िन्दगी के हर मुश्किल मोड़ पर साथ दिया है उसने .....
शायद आपको भी एक ऐसे दोस्त की जरूरत है जो मेरे पास है , जैसी  दोस्त मेरे पास है...सिर्फ दोस्त कह देना दोस्ती नही होती बल्कि उसे निभाना पढ़ता है, उम्मीद है आपकी तलाश जरुर पूरी होगी... 

Thursday, January 27, 2011

जिन्दगी का एक ये भी पहलु.........


 ..जिन्दगी में भी अजीब रंग होते है कभी ख़ुशी के तो कभी गम. कभी हसाती है तो कभी रुलाती है ये जिंदगी,कभी रूठना तो कभी मानना लगा ही रहता है उसी तरह पसंद और न पसंद भी जिन्दगी का ही एक हिस्सा है कब क्या चीज पसंद आ जाये और कब क्या नपसंद हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता क्योकि ये तो हमारी मर्जी पर आश्रित होता है ठीक उसी तरह हमारी जिन्दगी का हिस्सा है चश्मा सुनने में तो अजीब लगता है पर क्या कर सकते है क्यों की सच तो ऐसा ही होता है कभी डाट पड़ती है चश्मा लगाने के लिए तो कभी न लगाने के लिए इसीलिए तो कहते है की जिंदगी बहुत रंग दिखाती है या कह सकते है की हर सिक्के के दो पहलु होते है जब हम छोटे थे और घर में दादा ,दादी, नाना,नानी या फिर पापा जिनके भी चश्मा लगा हो उनका चश्मा चोरी से लगाते पकडे गए तो बहुत डाट पड़ती थी और अगर हम टी. वी. पास से देखते मिल गए मम्मी को तब तो समझो सामत आ गई क्योकि पास से टी. वी. देखने से आँखे खराब होने का डर रहता है यानी की ले-दे कर चश्मे पर ही बात अटकती है और अगर कही चश्मा लग गया है और तब नहीं लगाया है तब भी क्रोध का शिकार बनना पड़ता है ये तो बात थी घर की . और अगर बात करे चश्मों की तो चश्मा भी किसी भी प्रकार से किसी से काम नहीं है अरे चश्मे भी एक से एक आते है फैशन में भी और जिनकी आँखे कमजोर है उनके लिए भी कई तरह के चश्मे आते है जो देखने में भी अछे लगते है जैसे गोल , चौकोर , आयताकार अरे अब तो हम अपनी पसंद और नपसंद के चश्मे पहन सकते है . एक था चश्मा गाँधी जी का और आज के चश्मे जैसे "प्यार इम्पोसिबिल" में'प्रियंका चोपड़ा'और'उदय चोपड़ा'ने लगाया इसे भी देखकर लोगो ने इसी पसंद किया और बहुतो को लगाये भी देखा गया और वही कुछ पीछे नज़र डाली जाये तो फिल्म मुहब्बतें में शाहरुख़ खान का चश्मा भी पसंद किया गया ये तो बात थी उन चश्मों की जिन्हें हम तब लगाते जब हमारी आँखे कमजोर होती है चश्मे भी कई रंग के आते है काला,पीला, लाल, भूरा, मैरून, रंग के शीशे होते है जैसे अभी हाल ही में आई फिल्म "एक्शन रिप्ले" जिसमे भी 'अक्षय कुमार'और'ऐश्वर्या राय बच्चन 'ने भी काफी पुराने फैशन को दोबारा लाने की कोशिश की है ये बात अलग है की फिल्म हित नहीं हुई है ऐसी ही बहुत सी फिल्म है जिनमे चश्मों का अच्छा खासा इस्तेमाल हुआ है जैसे की "ॐ शांति ॐ ""डान" आदि और वैसे भी फिल्मो का आधे से ज्यादा फैशन पब्लिक ही अपनाती है आज-कल के लोग गाडी चलाते समय हेलमेट से ज्यादा लोग चश्मा लगाना पसंद करते है फैशन का फैशन हो जाता है साथ ही साथ आँखों का बचाओ भी हो जाता है ."चश्मा ओ चश्मा तेरे भी रूप अनेक"  क्योकि चश्मा ऐसी चीज है जो चेहरे की शोभा बड़ा भी सकती है तो घटा भी सकती है ..........जरा संभाल कर अपनाये अपना चश्मा .  

Tuesday, January 25, 2011

हम सबकी यादें

ये राहें जो हर तरफ जाने के लिए होती है  केवल फर्क ये होता है की तय हमें करना है की हमे जाना कहा है , हमारी मंजिल कहा है ये तय हमे ही करना है . जब हम घर से कही जाने के लिए निकलते है तो कई बार रास्ते में कई ऐसी बाते हो जाती है जो हमे हमेशा के लिए हमारी यादो में बस कर रह जाती है क्या कभी किसी ने ये सोचा है जो घटना  हम देखते है वो जब हमे जिंदगी भर याद रह जाती है तो वो बात जिनके साथ होती है क्या वो कभी भूल पाते है कभी वो इन बातो को अपने दिल से भुला पाने में सफल हो पाते है . जो पल हम जीते है वो बाद में यादे बनकर ही रह जाती है ऐसे ही हम जब स्कूल से पास हो कर विश्वविधालय में जाते है तो हमे वो स्कूल के दिन बहुत याद आते है वैसे ही आज विश्वविधालय के ये दिन जो दोस्तों के साथ हँसते-खेलते लड़ते झगते बीत जाते है वो यादे ही याद रह जाती कुछ यादे खट्टी होती है कुछ मीठी होती है पर अछी दोनों ही लगती है. जब हम घर से  विश्वविधालय और विश्वविधालय से घर आते है तो रास्ते में "बैकुण्ड धाम" पड़ता है कभी-कभी तो उसके सामने कुछ भीड़ तो हमेशा रहती है कभी-कभी ही वो रास्ता खाली मिलता है पर वही कभी-कभी बहुत भीड़ रहती है पर कुछ दिनों में तो जैसे आदत ही पड़ गई थी उस भीड़ की पर सायद इसकी आदत उन लोगो को नहीं थी जो वह पर सिर्फ उस दिन ही गए थे वो दर्द उनका अपना ही है उसको न  हम समाज सकते है और न हम महसूस कर सकते है इस दर्द को मैंने तब महसूस किया जब उसी जगह पर मैंने एक 5 से ६ साल के बच्चे को रोते चिल्लाते हुए देखा मैंने उससे पूछा की क्या हुआ तब वह पर खड़े एक लड़के ने बताया की उसकी माँ का देहांत हो गया है उस बच्चे को देख कर शायद मैंने उस दर्द को महसूस किया  
की हम उन स्कूल और विश्वविधालय की यादो को याद करके खुश होते है जबकि उनसे तो हम मिलते भी है और बातें भी होती है तो उनकी क्या कहे जो कभी दोबारा नहीं मिल पाते . 

Sunday, January 23, 2011

तन्हा या साथ

इस दुनिया में थे हम तन्हा-तन्हा से ,
पर थी एक छोटी सी आस ,
जो है दूरी आज,वो न होगी कल
पर एक दिन ....
हमे तो लगा हम है साथ-साथ ,
पर देखा जो पलट कर,
पाया खुद को सबसे तन्हा-तन्हा
इस दुनिया में हम थे तन्हा-तन्हा......

मजदूर वर्ग

                                    इस अत्याधुनिक और विकसित देश में जहाँ इमारतो पर इमारते खड़ी होती जा रही है. हमारा देश जो दिन पर दिन एक विकसित देश में बदलता जा रहा है. जहा पर खूबसूरत भव्य बंगले, शापिंग  माल, अत्याधुनिकता को झलकाते फ्लैट्स, सिनेमा घर, और एक से एक शानदार होटल जिनका बुनियादी सुविधा देखते ही बनती है, आजकल लोग कॉलेज में दाखिला लेने से पहले उसकी बनावट को देखते है, होटल में जाने से पहले उसका भव्यतम और खूबसूरती में ढला रूप देखते है.
                                  मजदूर शब्द जो कठोर मेहनत का पर्याय लगता है. मजदूर वो होता है जिसके पास अपनी इक्छानुसार उपयोग करने के लिए जरा भी स्वतंत्र समय नहीं है, जिसका पूरा जीवन, सोने, खाने आदि चंद शारीरिक जरूरतों के लिए पूंजीपतियों के लिए मेहनत करने में ही खर्च होता है, अरे वो तो बेचारा बोझा ढ़ोने वाले पशु की तरह बन कर ही रह जाता है या महज एक मशीन बन जाता है, उसका शरीर सुबह से शाम मजदूरी करते-करते जर्जर हो जाता है, एक गरीब मजदूर को अपनी आजीविका चलने के लिए अपनी पत्नी और बच्चो सहित दिनभर कोल्हू के बैल की तरह जुटा रहता है, शाम को सारा काम निपटा के उसे जो मजदूरी मिलती है, उसी से शाम को उसके घर का चूल्हा जलता है, और दो वक्त की रोटी नसीब होती है, जबकि इन पूंजीपतियों के कुत्ते भी महंगे बिस्कुट खाते है, और गरीब मजदूर का छोटा सा मासूम बच्चे बड़े लोगो के दरवाजे के किनारे खड़ा- खड़ा सब देखता रहता है, और अन्दर से कोई नौकर अपने मालिक के कहने पर उसे भगा देता है, आखिर क्या है ये ? एक मजदूर जो हमें रहने को सुन्दर सा मकान बना कर देता है जिसमे हम अपने सपनो का आइना सजाते है, उसी मजदूर का इतना शोषण होता है, आखिर कब तक चलता रहेगा ये सब , क्योंकि अगर इस पतन को रोका नहीं गया तो ये पूंजीपति अपने पैसे के बल पर उनको कुचल कर रख देंगे सर्कार को मजदूर वर्ग के लिए कुछ नियम बनाने चाहिए और उन नियमो को लोगो को मानना भी चाहिए. 
                                      आजभी ऐसे कई कारण है जिनके कारण जीवन मूल्य गिरते जा रहे है समृधि के इस दौर में जब लोगो को अधिक मुनाफा हो रहा है. यदि मजदूर वर्ग में भी अपनी मजदूरी बदने के लिए संभव प्रयास नहीं किये गए तो वह इस शोषण में घिरता चला जायेगा क्योकि चाहे जो हो इस दुनिया में हर इंशान को अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ता है, फिर वो चाहे जो भी हो............